
अशोकनगर: महाबोधि करुणा फाउंडेशन भारत द्वारा विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का आयोजन शाक्य गॉर्डन में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉक्टर डी.के.जैन , विशिष्ट अतिथि डॉ जयद्रथ साजवान एवं सुश्री कुनलिका राजपूत उपस्थित रहीं । कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं "वंदे मातरम" के गायन के साथ हुआ। अतिथियों का स्वागत संगठन के उपाध्यक्ष कमलेश शाक्य,नंदकिशोर पटवा तथा राजीव शर्मा द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य तथा मानसिक स्वास्थ्य दिवस की आवश्यकता का महत्व संस्था के संस्थापक नूतन कुमार शर्मा ने सभी अथितिगणों के मध्य रखा।डॉ डी.के.जैन साहब ने मानसिक विकलांगता डिस्थिमिया के बारे में बताया और बच्चों के प्रति व्यवहार कैसा हो समाज का क्या दायित्व है और उनके पुनर्स्थापन के बारे में विस्तार से समझाया। साथ ही विशिष्ट अतिथि डॉ साजवान ने चिकित्सा सेवा से जुड़े और कई मुद्दों पर साजवान साहब ने प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि रहीं सुश्री कुणालिक राजपूत ने डिप्रेशन, ओसीडी, एंजाइटी के लक्षणों के बारे में विस्तृत रूप से उपस्थित श्रोताओं को समझाया और उनके प्रति क्या रवैया अपनाया जाना चाहिए ये भी उन्होंने उपस्थित अतिथियों के समक्ष सांझा किया। फाउंडेशन की ओर से तमाम विद्वानों ने आंकड़ो को उपस्थित अतिथियों के साथ सांझे किए।जैसे-तकरीबन 7.5 प्रतिशत भारतीय किसी-न-किसी रूप में मानसिक विकार से ग्रस्त हैं। मानसिक रोगियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद भी अब तक भारत में इसे एक रोग के रूप में पहचान नहीं मिल पाई है, आज भी यहाँ मानसिक स्वास्थ्य की पूर्णतः उपेक्षा की जाती है और इसे काल्पनिक माना जाता है। सकते हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों की सबसे अधिक संख्या मौजूद है।आँकड़े बताते हैं कि भारत में 15-29 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है।उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारत एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य महामारी की ओर बढ़ रहा है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य कर्मियों की कमी भी एक महत्त्वपूर्ण विषय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्ष 2011 में भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित प्रत्येक 100,000 रोगियों के लिये 0.301 मनोचिकित्सक और 0.07 मनोवैज्ञानिक थे। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े बताते हैं कि भारत में तकरीबन 1.5 मिलियन लोगों में बौद्धिक अक्षमता और लगभग 722,826 लोगों में मनोसामाजिक विकलांगता मौजूद है। इसके बावजूद भी भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर किये जाने वाला व्यय कुल सरकारी स्वास्थ्य व्यय का मात्र 1.3 प्रतिशत है।
साथ ही वर्ष 2011 की जनगणना आँकड़ों से पता चलता है कि मानसिक रोगों से ग्रसित तकरीबन 78.62 प्रतिशत लोग बेरोज़गार हैं।
मानसिक विकारों के संबंध में जागरूकता की कमी भी भारत के समक्ष मौजूद एक बड़ी चुनौती है। देश में जागरूकता की कमी और अज्ञानता के कारण लोगों द्वारा किसी भी प्रकार के मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित व्यक्ति को ‘पागल’ ही माना जाता है एवं उसके साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता है।
कार्यक्रम में सम्मान स्वरूप अतिथि गण को स्मृति चिन्ह भेंट किये गये। इस आयोजन में जिला अभिभाषक संघ के एडवोकेट रमेश इटोरिया, हरिबाबू राय, सुरेन्द्र विश्वे, संतकुमार लोधी, हरिओम कलावत तथा रामवीरसिंह यादव आदि सहित बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।