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Submitted by Dr DS Sandhu on
Sleeping Legs

अशोकनगर: आज सुबह जब में अपने घर कुछ आवश्यक कार्य करने बैठा ही था कि मेरे एक मित्र के नंबर से कॉल आई ,इसे जैसे ही मैंने लाइन पर लिया उधर से मित्र की पत्नी का घबराहट भरी आवाज आई -" भाई साहब ,भाई साहब ! आवाज में मुझे बहुत बेचैनी महसूस हुई ।मेरे धीरज दिलाने के साथ ही ज्ञात हुआ कि इनके पति अर्थात हमारे प्रिय मित्र कुछ समय से अचानक बस सोये ही जा रहे हैं। उठाओ तो उठते नहीं कि फिर एकदम सो जाते हैं। जैसे न जाने कौनसी नींद का नशा इन पर छा रहा है । भाई साहब आप डॉक्टर है अतः कृपया बतायें हम क्या करें !
अपने मित्र की पत्नी और उनकी परेशानी को सुनकर मुझे अच्छे से समझ आ गया कि यह हाइपरसोमनिया (Hypersomnia) नामक अत्याधिक नींद आने की बीमारी हो सकती है । इसमें तो एकदम से ऐसी स्थिति बनती है कि, जिसमें किसी भी हाइपरसोमनिया से पीड़ित व्यक्ति को इतनी नींद आती है कि वह दिन के समय भी जागकर नहीं बिता सकता। जो भी लोग इस हाइपरसोमनिया की समस्या से पीड़ित होते हैं वे कहीं भी सो सकते हैं। उदाहरण के लिए काम के समय और यहाँ तक कि वाहन आदि चलाते(ड्राइविंग)समय भी वे सो सकते हैं। उनको नींद से जुड़ी अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे ऊर्जा में कमी और स्पष्ट रूप से सोचने में कठिनाई महसूस होना। इस समस्या से पीड़ित लोग 24 घंटे के समय में 9 घंटे से भी अधिक देर तक सोकर समय गुजार देते हैं। अधिक नींद आने के कारण से रात के समय इनकी नींद में किसी तरह की बाधाएं नहीं होती हैं एवं रात के समय यह बार-बार भी नहीं उठते।
इसके लक्षणों का इलाज करने के लिए अधिकांशतः उत्तेजक दवाओं (Stimulants) का उपयोग किया जाता है। वैसे, ये दवाएं अधिक नींद आने की समस्या के मुकाबले नार्कोलेप्सी (एक प्रकार का निद्रा रोग) रोग के लिए अधिक प्रभावी रूप से कार्य करती हैं। उपचार के दौरान अच्छी तरह से स्वच्छता रखने तथा चाय - कॉफी (कैफीन), शराब(मदिरा) अल्कोहल आदि से दूर रहने की सलाह दी जाती है।
अधिक नींद आने के प्रकार (Types of Hypersomnia) :-प्राथमिक हाइपरसोमनिया निम्न प्रकार के हो सकते हैं:
नैरोकोलेप्सी (Narcolepsy),आइडियोपैथिक हाइपरसोमनिया (Idiopathic hypersomnia),क्लेन-लेविन सिंड्रोम (Klein - Levin syndrome)।
यह भी नोटिस किया गया है कि प्राथमिक हाइपरसोमनिया अक्सर आनुवांशिक विकारों से जुड़ा होता है। द्वितीय हाइपरसोमनिया बहुत प्रचलित है। नींद अधिक आने की समस्या अन्य कई प्रकार की स्थितियों के कारण भी बन सकती हैं, जैसे डिप्रेशन, मोटापा, मिर्गी या मल्टीपल स्क्लेरोसिस। यह वायुमार्ग प्रतिरोधी सिंड्रोम, रेस्टलेस लेग सिंड्रोम, स्लीप डेप्रिवेशन आदि जैसी समस्याओं के साथ अधिक नींद आना एक सामान्य समस्या होती है। कुछ लोग आनुवांशिक रूप से भी इस समस्या के प्रति संवेदनशील होते हैं।
अधिक नींद आने के लक्षण ( Hypersomnia Symptoms) :-अधिक नींद आने की समस्या का मुख्य लक्षण लगातार थकान महसूस होना होता है। हाइपरसोमनिया से ग्रस्त लोग पूरा दिन उनींदापन से राहत लिए बिना नींद की झपकियां लेते रहते हैं। उनको लंबे समय तक सोने के बाद भी जागने में कठिनाई होती है।
अत्याधिक नींद: – रात में 10 या उससे भी अधिक घंटों तक लगातार सोना तथा इसके साथ दिन में झपकियां लेते रहना। इस प्रकार हाइपरसोमनिया से ग्रस्त के मरीजों के लिए 24 घंटों में से16 घंटे सोने में समय व्यतीत करना कोई असामान्य बात नहीं होती।
दिन के समय अत्याधिक नींद आना। अलार्म, प्रकाश और अन्य लोगों द्वारा उठाने के प्रयास करने के पश्चात भी नींद से जगाने (यहा तक की लंबी नींद के बाद भी) में मुश्किल होती है।
नींद की मादकता (Sleep inertia) :– नींद से जागने के पश्चात भी रोगी की शारीरिक स्थिति खराब रहती है। जिसमें आमतौर पर भ्रम एवं भ्रान्ति की स्थिति के चलते समन्वय में कमी स्पष्ट दिखाई देती है।अधिकांशतः नींद से उठने के बाद जागते रहने की अपेक्षाकृत वापस सो जाना अधिक सरल लगता है।
लंबे समय तक झपकियां लेना: – हाइपरसोमनिया से ग्रस्त व्यक्ति बहुत ही दुर्लभ मामलों में नींद को कम कर पाते हैं। जागने के उपरांत भी नींद की मादकता समस्या बनी रहती है।
हाइपरसोमनिया के अन्य लक्षण, जिसमें निम्न शामिल हैं :-ऊर्जा में कमी,याद करने में कठिनाई,चिड़चिड़ापन, चिंता,भूख में कमी,ऊर्जा घटना,सोचने एवं बोलने की गति धीमी होना, दृष्टिभ्रम (Hallucination), बेचैनी महसूस होती रहना आदि। कुछ मरीज पारिवारिक, सामाजिक, व्यवसायिक और अन्य व्यवस्थाओं से जुड़े कार्य करने की क्षमता भी हाइपरसोमनिया के कारण खो देते हैं।
हाइपरसोमनिया के कुछ संभावित कारणों में निम्न शामिल हैं: - नार्कोलेप्सी नींद विकार (दिन में नींद आना) और स्लीप एप्निया (नींद के दौरान सांस लेने में रुकावट महसूस होना),रात के समय पर्याप्त नींद ना ले पाना (स्लीप डेपरिवेशन), अधिक वजन बढ़ना, सिर में चोट लगना या कोई न्यूरोलॉजिकल रोग जैसे मल्टीपल स्क्लेरोसिस या पार्किंसंस रोग आदि।
कुछ मामलों में किसी शारीरिक समस्या के परिणाम स्वरूप यह समस्या होना, जैसे - सिर में आघात अथवा केंद्रिय तंत्रिका तंत्र में चोट लगना,या फिर कोई ट्यूमर का होना। कुछ प्रकार की दवाओं का उपयोग बंद (विड्रॉवल) करने के कारण भी हाइपरसोमनिया हो सकता है। किसी दवा का सेवन को बंद करने या कम करने पर कुछ मानसिक एवं शारीरिक लक्षण महसूस होने पर उसको 'मेडिसिन विड्रॉवल या ड्रग विड्रॉवल' कहा जाता है। कुछ प्रिस्क्रिप्शन दवाएं, जैसे ट्रैंन्क्विलाइजर्स (Tranquilizers) अथवा एंटीहिस्टामिन्स (Antihistamines)।
आनुवांशिकी कारण :– कुछ लोगों में हाइपरसोमनिया होने की संभावना का कारण परिवार के किसी सदस्य को हाइपरसोमनिया होना आनुवंशिकता का ही प्रमुख कारण होता है। लेकिन अन्य लोगों में इसका कारण स्पष्ट रूप से नहीं होता। आमतौर पर हाइपरसोमनिया को सर्व प्रथम किशोरावस्था अथवा वयस्कता में ही पहचान लिया जाता है। जो स्थितियां दिन में नींद आने की समस्याओं को बढ़ावा देती हैं, वह हाइपरसोमनिया विकसित होने के जोखिम को बढ़ा देती हैं। जो निम्न प्रकार से इसमें शामिल हैं -कुछ निश्चित प्रकार की मस्तिष्क संबंधी स्थितियां,किडनी संबंधी समस्याएं,स्लीप एप्निया,जिसको बिना उपचार किये छोड़ दिया गया हो, नौकरी की शिफ्ट अगर हाइपरसोमनिया के जोखिम से जुड़ी हो,जो लोग नियमित रूप से धूम्रपान करते हैं या शराब पीते हैं, उनको अधिक नींद आने की समस्या हो सकती है। कुछ प्रकार की दवाएं जो उनींदापन पैदा करती हैं, वे भी हाइपरसोमनिया के जैसे लक्षण विकसित कर सकती है।
अधिक नींद आने से बचाव :- अधिक नींद आने की समस्या अर्थात हाइपरसोमनिया के कारण आने वाली अत्याधिक नींद की रोकथाम करना इतना आसान नहीं है। आप शराब के सेवन को कम करके और नींद के लिए एक शांतिपूर्ण वातावरण बनाकर अधिक नींद को कम कर सकते हैं। इसके अलावा इस समस्या को कम करने के लिए ऐसी दवाओं का सेवन न करें जो उनींदापन का कारण बनती हैं और रात के समय एक्सरसाइज करने से भी बचें।
नींद की उचित स्थिति(स्लीप हाइजिन):- एक बहुत महत्वपूर्ण व्यवहारिक बदलाव है, जिसको लागू किया जाना चाहिए। इसमें एक नियमित सोने का शैड्यूल, ऐसा वातारवरण जो अच्छी नींद के लिए अनुकूलित हो, आरामदायक बिस्तर व तकिया और कैफीन तथा अन्य उत्तेजकों से बचाव आदि शामिल है।
अधिक नींद आने का निदान ( Diagnosis of Hypersomnia):- यदि कोई व्यक्ति दिन के दौरान लगातार उनींदापन महसूस करता रहता हैं, तो उसे अपने चिकित्सक से अविलंब संपर्क करते हुए परामर्श करना आवश्यक हो जाता है। हाइपरसोमनिया की समस्या का निश्चित पता लगाने के लिए भावनात्मक तनाव से संबंधी समस्याओं,किसी प्रकार की कोई दवा या ड्रग आदि लेने के संबंध में जानकारी लेने के साथ ही कुछ प्रश्न चिकित्सक पूछ सकते हैं।जैसे कि सोने की आदत, रात में कितनी नींद लेते हैं, और दिन के समय गहरी नींद में सोते हैं अथवा नहीं आदि से जुड़े इस तरह के कुछ प्रश्न चिकित्सक पूछ सकते हैं। चिकित्सक मरीज से उसके बारे में भी पूछ सकते हैं। क्योंकि कुछ इस प्रकार के ड्रग होते हैं जो नींद को बढ़ा सकते हैं।
नींद की समस्याओं को जानने की प्रक्रियाएँ:- रोगी की नींद संबंधी समस्या को जाँचने के लिए पॉलीसीमोग्राम (Polysomnogram) एवं मल्टीपल स्लीप लेटेंसी (Multiple sleep latency) ये दोनों ही टेस्ट बहुत ही अच्छे विकल्प माने जा सकते हैं। मल्टीपल स्लीप लेटेंसी टेस्ट की मदद से उस गति को मापा जाता है कि व्यक्ति गहरी नींद में कितने समय में प्रवेश करता है। हाइपरसोमनिया या नार्कोलेप्सी जैसे अन्य नींद संबंधी विकार से पीड़ित लोग बहुत जल्दी गहरी नींद में सो जाते हैं और इसे नींद संबंधी विकारों का पता लगाने के लिए यह टेस्ट सबसे अच्छा माना जाता है। मल्टीपल स्लीप लेटेंसी टेस्ट 10 मिनट से भी कम समय में उपरोक्त विकारों में से किसी एक का संकेत दे देता है।
पॉलिसोमोग्राम परीक्षण निद्रा अवस्था के दौरान विषय के मस्तिष्क तरंगों और शारीरिक गतियों को मापता है। यह उन नींद संबंधी विकारों का पता लगाने के लिए भी काफी अच्छा विकल्प है, जो दिन के समय नींद आने का कारण बनते हैं। यदि इस परीक्षण के दौरान कुछ भी असामान्य नहीं पाया जाता है, तो रोगी के लिए दूसरा टेस्ट करवाने को कहा जा सकता है।
हाइपरसोमनिया का परीक्षण करने के लिए लक्षणों और पिछली मेडिकल स्थिति की जांच करने के साथ ही रोगी की सतर्कता संबंधी जांच करने के लिए भी एक शारीरिक परीक्षण किया जा सकता है। उक्त जाँचों के अतिरिक्त हाइपरसोमनिया का निदान करने के लिए कुछ अन्य टेस्ट किये जाने आवश्यक हो सकते हैं, जिनमें निम्न जाँचें शामिल हैं :-
स्लीप डायरी – नींद के पैटर्न का पता लगाने के लिए, रातभर में आपके सोने और जागने का पूरा रिकॉर्ड।
एपवर्थ स्लीपिनेस स्केल – इस स्थिति की गंभीरता को निर्धारित करने के लिए आप अपनी तंद्रा (Sleepiness) की स्थिति को रेटिंग देते हैं।
अधिक नींद आने का उपचार - अधिक नींद आने की समस्या का इलाज सिम्पटोमेटिक (Symptomatic) रूप से किया जाता है। व्यवहार में बदलाव करके, जैसे देर रात तक काम करना व सोने में देरी करना आदि और आहार में कुछ प्रकार के बदलाव करने से इस समस्या से कुछ राहत मिल सकती है। इस दौरान मरीज को कैफीन और शराब आदि का सेवन करना छोड़ देना चाहिए।
चिकित्सक को दिखाएं:- यदि रोगी दिन में बार-बार गहरी नींद में सो जाते हैं। और अधिक नींद आने की समस्या उसके जीवन को प्रभावित कर रही है तो निश्चित ही अविलंब इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति को चिकित्सक के पास लेजाकर उचित इलाज तथा परामर्श लेना आवश्यक हो जाता है।
अधिक नींद रोकने के लिए दवाएं: –हाइपरसोमनिया से पीड़ित रोगी का इलाज के लिए चिकित्सक द्वारा कुछ उत्तेजक दवाएं लिखी जा सकती हैं, जैसे:-एम्फेटामिन (Amphetamine), मेथिलफेनाइडेट (Methylphenidate),मोडाफिनिल (Modafinil) । उक्त दवाओं के अलावा भी कुछ अन्य दवाएं भी हैं जिनका उपयोग विशेष रूप से चिकित्सक हाइपरसोमनिया का उपचार करने के लिए किया करते हैं। जैसे:-क्लोनीडिन (Clonidine),लेवोडोपा (Levodopa),ब्रोमोक्रीप्टिन (Bromocriptine), एंटीडिप्रैसेंट्स (Antidepressants), मोनॉएमाइन ऑक्साइड इनहीबिटर (Monoamine oxidase inhibitors)आदि।
हाइपरसोमनिया का इलाज मुख्य रूप से इसके अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करता है, चाहे हाइपरसोमनिया की स्थिति फिर प्राथमिक हो या कैसी भी जटिल। कभी-कभी सोते समय जांच करना, अत्याधिक नींद के लक्षणों को जानने में मदद करता है। इसके लक्षणों का इलाज करने की बजाए लक्षणों के अंतर्निहित कारणों का इलाज करना अधिक उचित माना जाता है। इसके लिए एम्फेटामिन जैसी उत्तेजक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। ये दवाएं मरीज को पूरा दिन जागने में मदद कर सकती हैं। इसके अलावा बिहेवियरल थेरेपी, नींद स्वच्छता और अध्ययन आदि प्रक्रियाओं को भी उपचार योजना में शामिल किया जा सकता है।
यदि मरीज में स्लीप एप्निया का परीक्षण किया गया है, तो इसके लिए चिकित्सक एक उपचार योजना निर्धारित करते हैं, जिसको पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (CPAP) के नाम से जाना जाता है। सीपीएपी प्रक्रिया में आपके सोने के दौरान आपको एक मास्क पहनाया जाता है। मास्क के साथ एक मशीन लगी होती है, जो नाक में लगातार हवा के प्रवाह को पहुंचाती है। नथुनों में हवा का दबाव वायुमार्गों को खुला रखने में मदद करता है। प्राथमिक हाइपसोमनिया को आमतौर पर उत्तेजकों के साथ इलाज किया जाता है, जैसे एम्फेटामिन और मोडाफीनिल। अन्य उपचारों में एंटीडिप्रैसेंट्स भी शामिल हो सकते हैं। अधिकांश मामलों में व्यवहारिक बदलावों को भी स्थापित किया जाता है।
यदि रोगी कुछ दवाएं ले रहें हैं और उनसे उनींदापन की समस्या हो रही हैं, तो उनमें बदलाव करवाने के बारे में अविलंब चिकित्सक से बात करें। रात के समय में अधिक नींद लेने के लिए शाम को जल्दी सोने की कोशिश कराई जाये।
(स्लीप हाइजिन) या नींद स्वच्छता सामान्य अभ्यास है, जो लगभग सभी लोगों को नींद संबंधी परेशानियों से बचने के लिए प्रोत्साहित करता है। नींद की दिनचर्या बनाएं, प्रतिदिन सोने एवं जागने का एक निश्चित ही समय रखें । यदि एम्फेटामिन वाली दवाएं ली जा रही हों तो, शराब एवं कैफिन वाले पदार्थों आदि के उपयोग करने की गलती कदापि नहीं करें ।
रोगी की स्थिति के बारे में दूसरे निकटवर्तियों को बताएं, जो लोग उससे प्यार और सहायता मिलने पर आप लंबे उपचार को भी पूरा करा सकते हैं। इसके अतिरिक्त रोगी के सहकर्मी, मालिक अथवा शिक्षक आदि को भी रोगी की स्थिति के बारे में ज्ञात होना चाहिए। ताकि वे रोगी की आवश्यकताओं को उसके अनुरूप बनाने में सहायता कर सकें।
अतिविस्तारित करने से बचें – प्रत्येक व्यक्ति को अपने शरीर और नींद की सुननी चाहिए। किन्तु हाइपसोमनिया से ग्रस्त रोगियों में बस यही अंतर होता है कि वे एक आम व्यक्ति की तरह अपनी नींद तथा शरीर आवश्यकता की सुन नहीं पाते हैं और चाहते हुऐ भी नींद से उठने में असमर्थ रहते हैं।
अधिक नींद को रोकने के लिए बहुत दवाइयां उपलब्ध हैं। किन्तु यह ध्यान रहे कि चिकित्सक के परामर्श बिना कभी भी कोई भी हाइपरसोमनिया से ग्रस्त रोगी कृपया किसी भी प्रकार की कोई भी दवाई न लें। क्योंकि चिकित्सक के परामर्श बिना ली गई दवाओं से रोगियों के स्वास्थ्य को गम्भीर रुप से हानि होने का अंदेशा बना रहता है। अतः किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या या बीमारी के निदान या उपचार हेतु बिना विशेषज्ञ की सलाह के नहीं किया जाना चाहिए। चिकित्सा परीक्षण और उपचार के लिए हमेशा एक योग्य चिकित्सक की सलाह अनिवार्य रुप से लेनी ही चाहिए।

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