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Submitted by Dr DS Sandhu on
Books

अशोकनगर: मुझे क्या लगभग सभी जानते हैं कि पढ़े लिखे ही अच्छा बुरा कुछ भी अपनी सोच समझ के अनुरूप परिवर्तन ला सकते हैं। क्योंकि पढ़े लिखों को ही अक्षर ज्ञान के माध्यम से पुस्तकों और ग्रंथों में समाहित ज्ञान एवं उसमें छिपे आदृश्य रहस्यों की जानकारी होती है । इससे परे अनपढ़ तो बेचारे इनकी दया पर ही आश्रित होते हैं।
यह शिक्षा यानि की पढ़ाई लिखाई ही है जो संवेदनशीलता के साथ हमारे मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करते हुए, हमें बिना सीगों बिना पूँछ वाले प्राणी (पशु) की पशुता से बाहर निकाल कर श्रेष्ठतम मानव एवं इसकी मानवीयता की श्रेणी में शामिल कराती है । यह शिक्षा ही तो है जो हमें अपने अपने समाज में अपनी योग्यता के अनुरूप प्रतिष्ठित करती है। फिर चाहे यह किसी भी क्षेत्र में प्राप्त की हो ,एक न एक दिन वो अपनी महक सब दूर विखेरती ही है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि शिक्षा ग्रहण करने का फलक बहुत व्यापक है। न कि लिखने पढ़ने का कॉपी राइट केवल साहित्यिक क्षेत्र से संबंधितों के पास ही है। शिक्षा किसी भी स्तर और विषय विशेष की क्यों न कि हो ,जिस ने जो भी शिक्षा ग्रहण की है वो अपने क्षेत्र के संबंध में लेखन आरम्भ कर अपनी अभिव्यक्ति को अंजाम दे सकता है।
जब दुनिया का लेखा जोखा पढ़ोगे, तो निश्चित ही यह भी जान सकोगे कि तुम पढ़ रहे हो वो भी किसी न किसी शिक्षित अर्थात पढ़े-लिखे की कलम से ही निकलकर तुम्हारे सहित अनेकों लोगों तक पहुंचा है।
हमारे देश में शहीदे आजम सरदार भगतसिंह ने तो जेल की काल कोठरी में बंद रहते हुए भी कितनी यातनाओं का सामना करते हुए, इतनी कम उम्र में इतनी परिपक्वता के साथ अपने विचारों को लिख गये, जो आज हमारी अमूल्य धरोहर है। इनके अतिरिक्त भी आजादी की लड़ाई में शामिल कितनी ही महान विभूतियों ने अपने- अपने विचारों को अपने ही तरीकों से लिपि बद्ध किया है। जो हमें अपनी आजादी को अक्षुण्य रखने में मील का पत्थर बने हुए हैं। सिर्फ गद्य-पद्म तक ही लेखन कार्य को सीमित नहीं किया जा सकता।लेखन की सीमाएं अनंत रुप में देखी और पढ़ी जा सकती हैं। इस तरह लेखन की दुनिया अनंत है।
तुम्हें विज्ञान ,समाज विज्ञान, कला,भाषा, वाणिज्य जो भी पसंद है, उस पर अपनी बात बिना संकोच के लेखन कार्य किया जा सकता है। इसके लिए किसी पर भी कोई पाबंदी नहीं है। बस देर है तो अपनी कलम उठाने और उसको काग़ज़ पर चलाने की , इतना भर शुरू कर दिया तो फिर देखना लेखन तो अपने आप कब विचारों का स्वरूप धारण कर लेगा ,यह तो स्वयं तुम्हें भी ज्ञात नहीं रहेगा। वैसे ही जैसे एक छोटी - सी पानी की झिर(स्रो) अपनी दिशा में आगे बहती हुई कब नदी और दरिया का रूप धारण कर लेती है ,उसे खुद इसका भान नहीं होता है।
किसी भी विषय पर अपने आपको केन्द्रित किया जा सकता है। तुम अपनी आदतों से लगाकर उन सब बातों पर कलम चला सकते हो जो तुम्हारी पसंद न पसंद का हिस्सा हो सकते हैं ।अपने रोजमर्रा के खाने पीने की आदतें और प्राकृति का सानिध्य विभिन्न प्रजातियों के पेड़ पौधे, पशु, पक्षी, नदी , झील, पहाड़ वादियाँ , कल कारखाने , खेल के मैदान, बाग बगीचे आदि कुछ भी तुम्हारी सोच का फलक इसमें नीहित हो सकता है।
कभी कभी तुम्हारे साथ ऐसा भी हुआ कि तुम किसी को समझाने - बुझाने गए और वो तुम्हारी बात को समझे बिना ही इसके विपरीत गुस्से से आग बगुला हो बन बैठा । कभी कभी हम स्वयं भी जाने अंजाने किसी के प्रति कुछ भी अच्छी बुरी धारणाएं बना लेते है , किन्तु कालांतर में जब स्थिति स्पष्ट होती है , तब खुद ही अपने सोच पर पछतावा करते और कितनी ही शर्मिंदगी महसूस करते हैं। यह शर्मिंदगी का किसी और को सामना नहीं करना पड़े इस पर अपनी लेखन ऊर्जा के माध्यम से साकारात्मक रूप से आप कार्य कर सकते हैं।
यह तुम जो सुबह - सुबह चाय की चुस्कियों के साथ अपने सामने अखबार रखकर तमाम देश दुनिया से लगाकर अपने शहर और मोहल्ले की खबर तक पढ़ रहे हो और अपने मन ही मन कुढ़- कुढ़ा रहे हो , क्योंकि अखबार में तुमने जो पढ़ा वो हकीकत से एकदम भिन्न है। वैसे भी अब तुम बड़े हो गये हो और तुम्हें सत्य तथा मिथ्क समझने का ज्ञान हो ही गया हो गया। फिर भी तुम यह अच्छे से समझ लो कि इस पूरी दुनिया में सिर्फ दो किस्म के लोगों की तरह ही पत्रकार जगत बंटा हुआ है एक वो जो रसूखदारों के आश्रित हो केवल वही बात सोचते लिखते ही नहीं बल्कि पूरी सामर्थ्य उनकी वकालत करते हुए बदले में गली के आवारा कुत्तों की तरह रोटी और बोटी के टुकड़े पाने लाठी , डंडा और पत्थर तक खाते और अद्भूके ही अपनी दुम्म हिलाते रहते हैं। दूसरे वो लोग जो समाज में व्याप्त कुरीतियों, शोषण , असमानताओं , अशिक्षा , भ्रुण हत्या, ब्लेकमेलिंग जैसे अमानवीयता के अपराधों के संबंध में खुले दिमाग के साथ अपनी तेज नज़रों से देखते हुए कलम चलाते हैं। जिन्हें किसी भी तरह से रोकना संभव नहीं होता। यह भी सही है कि इस तरह के लोग अपने जीवन में कितनी ही आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक परेशानियों से जुझते रहते हैं। किन्तु कभी ज़ुल्म सितम से समझौता नहीं करते और अपनी ही धुन में पूरी ईमानदारी एवं मानवीय निष्ठा से अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहते देश और समाज को सच्चाई से रू-ब-रू कराते हुए साकारात्मकता से आगे बढ़ते हुए नवनिर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
आज इस दुनिया में ऐसे ईमानदार और सच्चे लोगों की गिनती नग्ण्य ही है । जबकि पहले तरह के चापलूस लोगों की संख्या बहुत अधिक तादाद में हरेक स्थान पर अमानवीय कृत्यों को स्थापित करने में संलग्न मिल जायेगी। अंतोगत्वा दूसरे तरह के ईमानदार लोगों का सम्मान ध्रुव तारे की तरह स्थिर रहता है। अंत में मैं अपनी बात इन शब्दों के साथ विराम देना चाहूँगा कि मानव और मानवीयता की रक्षा करने के लिए अपने ज्ञान विज्ञान से लवरेज विचारों से परिपूर्ण अपनी कलम को सार्थक दिशा प्रदान करते हुए अपना शिक्षित और जागरूक होने के कर्तव्यों का निस्वार्थ भाव से देश एवं मानवीय समाज निर्माण में साकारात्मकता से निर्वाह करें !

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